१९९६ की लिखी टिप्पड़ी
कश्मीर जाने की बात तो नामुमकिन है. एक तो वहाँ के हालत और फिर वहां की ठण्ड सहेना मेरे बूते के बहार है. यही हाल किसी और हिल स्टेशन के होंगे.
तभी मेरे एक शुभचिंतक ने टांग अड़ाई और अपना मूल्यवान सुझाव दे डाला. वे बोलते हैं - "आज कल तिहाड़ आश्रम के बड़े चर्चे हैं. वहीँ का एक चक्कर मार आओ ". वो वहां की तारीफ के पुल बंधते चले गए - "आज कल अखबारों मैं काफी तारीफ चल रही है.सुना है बड़ा ही अच्छा माहौल है."
वो बोलते हैं - "सभी अपने अपने कामों मैं व्यस्त रहेते हैं. कुछ काम नहीं है तो लाइब्रेरी मैं ही बैठ जाओ. दो चार किताबें चाट डालो. योग और ध्यान वगेइरेह की क्लास मैं बैठो, कुछ नया सिखने का मौका मिलेगा भाई. अभी कुछ ही दिन पहेले तो केन्द्रीय खेल राज्य मंत्री मुकुल वासनिक ने वहां जार्यल स्टेडियम का उदघाटन किया है, दो चार हाथ क्रिकेट के भी हो सकते हैं. सुबह शाम भक्ति संगीत का आनंद उठाओ. बस फिर रात मैं चक्की के पिसे आटे की रोटी खाओ और चैन से सो जाओ. बस ठाट ही ठाट हैं."
आगे कहेते हैं - "अनुभव की बात तो करो ही मत. किरण बेदी जैसी अफसर के रहेते अनुभवों की कोई कमी नहीं होगी. इतने शानदार माहौल मैं कई महारथियों से मुलाकात होगी. हो सकता है तुम भी अपनी बैओग्राफी वगैरह के चक्कर मैं पद जाओ और शामिल हो जाओ कोन्त्रोवेर्सिअल लेखकों की लिस्ट मैं. बस लिख डालो एक लेख या जीवनी नमक मिर्च लगा कर के, बस फिर देखो रोज़ अखबारों मैं सचित्र लेख अपने ऊपर ".
लगातार बोले ही जा रहे थे वोह. आगे कहेते हैं - "भाई अब मुफ्त मैं खिलाने के लिए तो किरण बेदी जी तुम्हें अपने आश्रम मैं रंखेंगी नहीं. कुछ महत्वपूर्ण डिग्री भी तो लेनी पड़ेगी वहां घुसने के लिए. अगर लाइफ टाइम एंजोयमेंट चाहिए तो कोई बड़ा चक्कर चलाना पड़ेगा जैसे - क़त्ल, डकैती या फिर आजकल तो एक चाक़ू या एक पिस्तौल ही काफी है, अन्दर जाने के लिए. देखा नहीं संजय दत्त को कैसा लपेटा है. हाँ अगर शोर्ट टाइम का प्लान है तो किसी राजनितिक दल के उग्र प्रदर्शन मैं पकडे जाओ और काम हो गया. हफ्ते दस दिन के बाद बाहर आना ही है, तिहार रिटर्न की पदवी के साथ."
"भाई मेदिओक्रेस के लिए न तो हमारे समाज मैं कोई जगह हैं न ही तिहाड़ मैं. बस लाइफ टाइम या शोर्ट टाइम चलता है. पार्ट टाइम का कोइ चांस नहीं है " - और अपने प्रवचन देने के बाद वह जनाब मुझे पहेले से ज्यादा ही परेशान छोड़ कर चलते बने .
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