यह कविता लिखने की कोशिश मैंने १/१/१९९५ मैं की थी
अगर आपने मेरे दिल के कुएं मैं झांक कर एक बार देखा होता, इसमें कितनी गेहेराई है,
तब आपको मालूम पद जाता हम में कितनी अच्छाई कितनी बुराई है.
क्यों टोकते हो जब मेरी धड़कन की धुन का तुम्हें पता ही नहीं,
मुझे भी मालुम है यारो - क्या गलत है और क्या है सही.
अगर शौक है किसी ज़िन्दगी मैं झाँकने का इतना,
तो झांक कर देखो अपने दिल मैं, कुछ ज़मीर भी बाकी है की नहीं.
यह कविता है उनके लिए जिन्हें आदत है टांगअटकाने की,
बात हो छोटी सी, उसे तिल से ताड़ बनाने की.
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